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गर्भधातु - वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ .419
सुपरिणाम
स्थिराबोधि मुद्रा की साधना पृथ्वी तत्त्व को संतुलित करते हुए शरीर वजन, चर्बी, स्थूलता को संतुलित एवं भावों को तटस्थ रखती है। मूलाधार चक्र को जागृत करते हुए यह व्यक्तित्व बोध करवाती है। भावों की अभिव्यक्ति में सहायक बनती है। क्रोध, निराशा, घृणा एवं विपरीत परिस्थितियों का संतुलन करते हुए सहजानन्द की प्राप्ति करवाती है। • इस मुद्रा का प्रभाव शक्ति केन्द्र पर पड़ता है इससे विद्युत प्रवाह का ऊर्ध्वकरण होता है। प्रजनन ग्रन्थियों के स्राव को संतुलित करते हुए शरीरस्थ जल एवं फॉस्फोरस तत्त्व का नियमन कर यौन हार्मोन उत्पन्न करती है।
93. तथागत दंष्ट्र मुद्रा
तथागत शब्द का एक अर्थ 'बुद्ध' है। अभिप्रायतः यह मुद्रा भगवान बुद्ध के दाँतों से सम्बन्धित होनी चाहिए अर्थात भगवान बुद्ध की दन्त पंक्तियों को दर्शाने हेतु यह मुद्रा की जाती होगी। शेष वर्णन पूर्ववत ।
तथागत दंष्ट्र मुद्रा