Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...423
तेजस्-बोधिसत्व मुद्रा सुपरिणाम
• इस मुद्रा की निरंतर साधना आकाश तत्त्व को संतुलित रखती है तथा शरीर से विषाक्त द्रव्यों को निकालती है। • आज्ञा एवं सहस्रार चक्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा आन्तरिक ज्ञान एवं दिव्य चक्षुओं को जागृत करती है। कामेच्छाओं का नियमन करती है। शारीरिक विकास, मस्तिष्क और स्मरण शक्ति का संतुलन रखती है। • यह मुद्रा दर्शन एवं ज्योति केन्द्र को सक्रिय करते हुए कषाय, नो कषाय, काम वासना, आसक्ति आदि संज्ञाओं के उपशमन में सहायक बनती है और अपराधी मनोवृत्ति को शांत करती है। • पीयूष एवं पिनियल ग्रन्थि के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा शरीर की आन्तरिक हलन-चलन, हृदय की धड़कन, शरीर तापक्रम एवं शक्कर की मात्रा को नियंत्रित करती है तथा जीवन प्रवृत्ति एवं स्वभाव को सम्यक बनाती है। 97. तेम्बौरिन्-इन् मुद्रा
जापान में इस मुद्रा के तीन नाम हैं- तेम्बौरिन्-इन्, गंधरन्-तैम्बौरिन् इन् और होरयुजि तेम्बौरिन्-इन्। इसे चीन में चुआँ-फा-लुन्-यिन् मुद्रा तथा भारत में धर्मचक्र एवं धर्मचक्र प्रवर्तन मुद्रा कहते हैं। मुख्यत: यह जापानी और चीनी