Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

Previous | Next

Page 493
________________ गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...427 प्रथम स्थिति __ इस प्रकार में एक हाथ का उपयोग होता है तथा यह मुद्रा त्रिशूल एवं बाधाओं के नाश की सूचक है। इस मुद्रा में हथेली सामने की तरफ, अंगूठे का अग्रभाग कनिष्ठिका के नाखून भाग को दबाता हुआ तथा शेष अंगुलियाँ सम्मिलित रूप से ऊपर फैली हुई रहती हैं।117 सुपरिणाम • आकाश तत्त्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा मानसिक चेतनाओं को पोषण देती है। नि:स्वार्थ भावना का निर्माण कर अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के विकारों को दूर करती है। • त्रिशूल मुद्रा का प्रयोग आज्ञा चक्र को जागृत करते हुए बुद्धि को तीक्ष्ण एवं व्यापक बनाता है। • दर्शन केन्द्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा वीतरागता की ओर अग्रसर करती है। इससे पूर्वाभास, अन्तर्दृष्टि आदि अतिन्द्रिय क्षमताओं का विकास होता है तथा आध्यात्मिक उन्नति एवं चित्त की स्थिरता में विशेष सहायता प्राप्त होती है। • पीयूष ग्रन्थि को प्रभावित करते हुए यह शारीरिक हलन-चलन, हृदय की धड़कन, शरीर तापक्रम, रक्त शर्करा आदि को नियन्त्रित रखती है। द्वितीय स्थिति त्रिशूल एक आक्रामक शस्त्र है जो धर्मशत्रुओं के विनाश का सूचक है। इस दूसरे प्रकार में हथेलियाँ आपस में सटी हुई मध्यभाग में रहती है, कनिष्ठिका हथेली में मुड़ती है तथा शेष अंगुलियाँ परस्पर में किंचित अन्तर रखती हुई अग्रभागों का स्पर्श करती है।118 सुपरिणाम • इस त्रिशूल मुद्रा को धारण करने से शरीरस्थ जल एवं वायु तत्त्व संतुलित रहते हैं। जिसके कारण शरीर एवं जीवन की सुरक्षा होती है। यह मुद्रा शारीरिक तापमान, रुधिर अभिसंचरण एवं हृदय की कार्यपद्धति को विशेष रूप से नियंत्रित रखती है। • स्वाधिष्ठान एवं अनाहत चक्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा कलात्मक एवं सृजनात्मक कार्यों में प्रवृत्त करती है। उदारता, सहकारिता, पापभीरूता आदि भावों को जागृत करती है। शंकालु वृत्ति, भावात्मक अस्थिरता, नशे की आदत आदि पर नियंत्रण करती है। • स्वास्थ्य एवं आनंद केन्द्र को सक्रिय करते हुए यह मुद्रा कामवासनाओं के परिशोधन एवं

Loading...

Page Navigation
1 ... 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540