Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...425 केन्द्र के कार्यों को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा कामग्रन्थियों, वृषण एवं डिम्बाशय की क्रियाओं का निरोध करती है। इससे भाव धारा निर्मल एवं परिष्कृत बनती है। विद्युत धारा का ऊर्वीकरण होता है और असत वृत्तियों का उपशमन होता है। . प्रजनन एवं थायमस ग्रन्थि के कार्यों को नियमित करते हुए यह मुद्रा कामवासना का मुख्य रूप से संतुलन करती है तथा शारीरिक जड़ता को दूर कर उसे क्रियाशील बनाती है। 98. तौ-म्यौ-इन् मुद्रा
भारत में यह मुद्रा, दीप मुद्रा के नाम से पहचानी जाती है इसलिए अंधकार और उपेक्षा के विलीन होने की सूचक है। शेष वर्णन पूर्ववत। विधि
दायी हथेली को सामने की तरफ अभिमुख कर अनामिका और कनिष्ठिका को अच्छे से झुकायें, अंगूठे को उनके अग्रभाग पर स्पर्श किये हुए रखें तथा तर्जनी और मध्यमा को प्रथम एवं द्वितीय जोड़ पर मोड़ते हुए खूटी जैसा बनाने पर 'तौ-म्यो-इन्' मुद्रा बनती है।116
ती-म्यो-इन् मुद्रा