Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...403
द्वितीय प्रकार
दूसरे प्रकार में भी हथेलियों को एक साथ कर अंगूठों को Cross करें, किन्तु बायां अंगूठा अन्दर की तरफ रहें । तर्जनी, अनामिका एवं कनिष्ठिका को बाहर की तरफ अन्तर्ग्रथित करें तथा मध्यमा हल्की सी घुमती हुई अग्रभागों को स्पर्श करने पर रत्न मुद्रा का द्वितीय प्रकार बनता है195
रत्न मुद्रा-2
सुपरिणाम
• अग्नि एवं आकाश तत्त्व का संतुलन कर यह मुद्रा पेट के विभिन्न अवयवों की क्षमता का वर्धन करती है। इससे हृदय शक्तिशाली एवं कब्ज दूर होती है। • मणिपुर एवं सहस्रार चक्र को जागृत कर यह मुद्रा मस्तिष्क में मेरुजल का संचालन करते हुए कामेच्छाओं का नियमन करती है । चित्त को शांत एवं समाधिमय बनाती है। • तैजस एवं ज्ञान केन्द्र को सक्रिय कर पूर्वजन्म स्मृति एवं इन्द्रिय संवेदनाओं की अनुभूति करवाती है तथा शक्ति संचय एवं वृत्तियों को शांत रखती है।