Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...397 वक्तृत्व, कवित्व आदि कलाओं का विकास करती है तथा प्रेम, करुणा, मैत्री, सेवा एवं सहानुभूति के भाव विकसित करती है। • आनंद एवं विशुद्धि केन्द्र को प्रभावित कर यह मुद्रा क्रोधादि कषाय भावों को नियंत्रित रखती है तथा उच्चतर
चेतना एवं आत्मिक शक्तियों का विकास करती है। 74. न्यारै-शिन्- इन् मुद्रा
यह बुद्ध के परम ज्ञान उपलब्धि की सूचक मुद्रा है। शेष वर्णन पूर्ववत। विधि
युगल हथेलियों को एक साथ करके अंगूठा, तर्जनी, अनामिका और कनिष्ठिका को भीतर की तरफ अन्तर्ग्रथित करें तथा मध्यमा को ऊर्ध्व मुखरित कर अग्रभागों का स्पर्श करवायें। इस भाँति 'न्यारै-शिन्-इन्' मुद्रा बनती है।89
सुपरिणाम
न्यारी-शिन्-इन् मुद्रा • यह मुद्रा आकाश एवं पृथ्वी तत्त्व को संतुलित करते हुए अस्थि तंत्र, मांसपेशी, त्वचा आदि को सुदृढ़ बनाती है। • मूलाधार एवं सहस्रार चक्र को प्रभावित करते हुए विकल्पात्मक स्थिति का दमन कर निर्विकल्प स्थिति को