Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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340... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन विधि
दोनों हथेलियों को निकट करते हुए मध्यभाग में रखें, फिर अंगूठों को समीप कर हथेली के भीतर की ओर ले जायें, तर्जनी को सीधी फैलायें, मध्यमा को उभय जोड़ों से झुकाते हुए अंगूठे के अग्रभाग का स्पर्श करवायें तथा अनामिका और कनिष्ठिका का अपने प्रतिपक्षी अग्रभाग का स्पर्श करते हुए रहना 'फु-कौ - इन्' मुद्रा है। 34
सुपरिणाम
• यह मुद्रा जल, वायु एवं आकाश तत्त्व को संतुलित करती है। इससे हृदय, रक्त आपूर्ति, अस्थि तंत्र, बोन मेरो, फेफड़ें और गुर्दे सम्बन्धी रोगों का निदान होता है ।
• स्वाधिष्ठान, सहस्रार एवं विशुद्धि चक्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा विकल्पात्मक स्थिति को शांत करती है तथा निर्विकल्पात्मक असम्प्रज्ञात समाधि की प्राप्ति करवाती है।
• स्वास्थ्य विशुद्धि एवं ज्ञान केन्द्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा शारीरिक ऊर्जा एवं जैविक विद्युत का संचय करती है। उच्चतर चेतना और आत्मिक शक्तियों का विकास, इन्द्रिय संवेदन की अनुभूति, प्राग अवबोध एवं अतिन्द्रिय उपलब्धियों में सहायक बनती है।
35. फु-कु- यौ - इन् मुद्रा
जापानी बौद्ध परम्परा के अनुयायी यह मुद्रा वज्रधातु मण्डल और होम आदि धार्मिक क्रियाओं के प्रसंग पर दर्शाते हैं। इस मुद्रा का सामान्य अर्थ है वैश्विक चढ़ावा । स्पष्ट होता है कि प्रस्तुत मुद्रा के माध्यम से वज्रायना देवी तारा अथवा गर्भधातु मण्डल आदि के समक्ष विश्व स्तर की अमूल्य सामग्री चढ़ाई जाती है। यह संयुक्त मुद्रा निम्न प्रकार से होती है
विधि
हथेलियों को मध्यभाग में रखें, अंगूठों को एक साथ मिलायें, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका को अग्रभाग से अन्तर्ग्रथित करें तथा तर्जनी को पहले- दूसरे जोड़ से मोड़कर उनके अग्रभागों का स्पर्श करवाने पर फु-कु-यौ - इन् मुद्रा बनती है।35