Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...341
फु-कु-यी-इन् मुद्रा सुपरिणाम
• पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा शरीर-नाड़ी शोधन, कब्ज निवारण एवं शारीरिक स्वस्थता में सहायक बनती है। यह क्रोधादि कषायों एवं दुर्भावों का शमन भी करती है।
• मूलाधार एवं सहस्रार चक्र का जागरण कर भौतिक वृत्तियों का निरोध एवं समाधिस्थ अवस्था की प्राप्ति करवाती है।
• गोनाड्स एवं पिनियल ग्रंथियों के स्राव को संतुलित कर यह मुद्रा देहस्थित पोटेशियम, जल एवं सोडियम के प्रमाण को संतुलित रखती है। अन्य ग्रंन्थियों के संचालन में सहायक बनती है तथा मानसिक बल, निर्णयात्मक एवं नेतृत्व शक्ति का विकास करती है। 36. फुन्नु-केन-इन् मुद्रा
यह तान्त्रिक मुद्रा भी जापानी बौद्ध वर्ग के श्रद्धालुओं द्वारा धारण की जाती है। इस मुद्रा के द्वारा गर्भधातु मण्डल-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी क्रियाओं को सुविधि पूर्वक सम्पन्न किया जाता है। भारत में इसे क्रोध मुद्रा भी कहते हैं इसलिए यह क्रोध की सूचक मानी गई है। यह एक हाथ से निम्न विधि पूर्वक की जाती है