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352... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
बलशाली, कान्तियुक्त एवं हृदय स्वस्थ बनता है और श्वसन क्रिया रक्त परिसंचरण, मल-मूत्र गति आदि नियन्त्रित होती है।
• विशुद्धि, स्वाधिष्ठान एवं मूलाधार चक्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा निरोगी, कार्य कुशल, ओजस्वी, शोकहीन, शान्तचित्त, दीर्घजीवी एवं महाज्ञानी बनाती है तथा स्थानच्युत नाभि को अपने स्थान पर लाती है।
एक्युप्रेशर चिकित्सकों के अनुसार इस मुद्रा को करने से हिचकी, वात विकार, शरीरस्थ कैल्शियम एवं फॉस्फोरस आदि का संतुलन होता है और स्त्री सम्बन्धी समस्याओं का निवारण होता है।
42. गो- सन् - जे मुद्रा
यह तान्त्रिक मुद्रा पूर्ववत मण्डल विधान एवं धार्मिक क्रियाओं के अवसर पर की जाती है। इस मुद्रा का अर्थ-तीन जीवन समाप्त करना बतलाया है। प्रस्तुत अर्थ का अभिप्राय अज्ञात है। इसे त्रैलोक्य विजय देव की सूचक मुद्रा माना गया है।
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गो-सन् - जे मुद्रा