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362... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन 49. ज्ञान श्री मुद्रा
यह मुद्रा ज्ञान अभिवृद्धि के प्रयोजन से की जाती है। इसे गर्भधातु मण्डल आदि के सामने करते हैं। शेष वर्णन पूर्ववत।
विधि
दायी हथेली को नीचे की तरफ और बायीं हथेली को ऊपर की तरफ रखें, अंगूठा और मध्यमा को हथेली तरफ मोड़ते हुए उनके अग्रभागों को जोड़ें तथा तर्जनी, अनामिका और कनिष्ठिका को मध्यभाग की तरफ सीधा रखने पर ज्ञानश्री मुद्रा बनती है।53
खान श्री मुद्रा सुपरिणाम
• यह मुद्रा करने से पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व प्रभावित होते हैं। इससे शरीर की जड़ता, भारीपन, दुर्बलता आदि का निवारण होता है। शरीर स्वस्थ, शक्तिशाली एवं मजबूत बनता है।