Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...359
विधि
हथेलियों को मध्यभाग में रखें, अंगूठों को आपस में स्पर्श करते हुए सीधे रखें, तर्जनी को मोड़कर अंगूठे के प्रथम बाह्य जोड़ से स्पर्श करवायें तथा मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका के अग्रभागों को परस्पर जोड़ने से होनोइन् मुद्रा बनती है। 50
सुपरिणाम
• आकाश एवं वायु तत्त्व को संतुलित कर यह मुद्रा हार्ट, गुर्दे एवं फेफड़ों से सम्बन्धित समस्याओं का समाधान करती है और लकवा, हार्ट अटैक आदि में लाभदायी है।
• आज्ञा एवं अनाहत चक्र का जागरण कर यह मुद्रा बालकों के मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक विकास में सहयोगी बनती है, ज्ञान ग्रंथियों को जागृत करती है तथा हृदय में सद्भावों को प्रस्थापित करती है।
एक्युप्रेशर पद्धति के अनुसार यह मनोबल, निर्णायक शक्ति, स्मरण शक्ति, श्रवण एवं दर्शन शक्ति का विकास करती है।
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47. इस्सइ - हौ - ब्यो- दौ-कै- गो मुद्रा
यह मुद्रा जापान की बौद्ध परम्परा में गर्भधातु मण्डल-वज्रधातु मण्डल आदि धार्मिक क्रियाओं से सम्बन्धित है। दोनों हाथों में समान मुद्रा बनती है। विधि
हथेलियों को मध्यभाग में रखें, अंगूठा और अनामिका को हथेली में मोड़ें तथा शेष अंगुलियों को ऊपर की तरफ सीधी कर उनके अग्रभागों को संयुक्त करें इस तरह यह मुद्रा बनती है। 51
सुपरिणाम
यह मुद्रा अग्नि एवं आकाश तत्त्व को संतुलित करती है। इससे पाचनतंत्र एवं हृदय सम्बन्धी विकार दूर होते हैं। शरीर - नाड़ी शोधन, उदर के विभिन्न अवयवों का क्षमता वर्धन, हृदय शक्तिशाली एवं कब्ज दूर होती है ।