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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियों ...357 • मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत कर यह मुद्रा शरीरस्थ सोडियम आदि का नियंत्रण करती है तथा पेट के पर्दे के नीचे स्थित सभी अवयवों के कार्य का नियमन करती है।
• एड्रिनल और नाभिचक्र को प्रभावित कर यह मुद्रा पित्ताशय, लीवर, रक्तचाप, प्राणवायु, एसिडिटी आदि को नियंत्रित रखती है। नाभि स्थानच्युत होने पर उसे यथास्थान लाने में भी सहायक बनती है। 45. होनजोन-बु-जौ-नो-इन् मुद्रा ___यह मुद्रा मुख्य देवता को प्रसन्न करने के लिए की जाती है। शेष वर्णन पूर्ववत।
बोनजोन-बु-जी-नो-इन् मुद्रा विधि ___ दोनों हथेलियों को एक-दूसरे के सन्मुख रखें, अंगुलियों और अंगूठों को हथेली के भीतर आपस में अन्तर्ग्रथित करें तथा दायीं तर्जनी को बायीं तर्जनी के ऊपर झुकाये रखें, इस भाँति होनजोन-बु-जौ-नो-इन् मुद्रा बनती है।49