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348... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
गे-इन् मुद्रा - 3
सुपरिणाम
इस मुद्रा का प्रयोग अग्नि एवं जल तत्त्व को संतुलित करते हुए उग्रता, क्रोध, आलस्य, निद्रा, प्रमाद आदि का शमन कर तीव्र दृष्टि, शारीरिक बल, कान्ति, ओजस्विता को बढ़ाती है ।
• मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र का जागरण कर यह मुद्रा मधुमेह, कब्ज, अपच, गैस एवं पाचन विकृतियों में लाभ पहुँचाती है।
एड्रिनल एवं नाभिचक्र को सक्रिय करते हुए यह एसिडिटी, रक्तचाप, पित्त, प्राणवायु, रक्त परिभ्रमण आदि पर नियंत्रण करती है तथा स्थानांतरित नाभि को स्थान पर लाती है।
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चतुर्थ विधि
हथेलियों को बाहर की तरफ रखते हुए गे - इन् मुद्रा का प्रथम प्रकार बनायें और फिर दोनों हाथों को कलाई की जगह पर क्रॉस करने से गे-इन् मुद्रा का चौथा प्रकार बनता है | 42
सुपरिणाम
• यह मुद्रा अग्नि एवं वायु तत्त्व को संतुलित करते हुए कुपित वायु, गठिया, वायुशूल, साइटिका, लकवा, सिरदर्द, अनिद्रा आदि रोगों में राहत देती है ।