Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...347
गे-इन् मुद्रा-2
सुपरिणाम
• यह मुद्रा वायु एवं आकाश तत्त्व को संतुलित कर छाती, फेफड़ें, हृदय, थायमस, थायरॉइड, टान्सिल आदि का नियंत्रण करती है।
• अनाहत एवं आज्ञा चक्र को जागृत कर यह मुद्रा वाक्पटु, कवि, इन्द्रियजयी बनाती है तथा हृदय रोग आदि का उपशमन करती है।
•
एक्युप्रेशर पद्धति के अनुसार बालकों में जड़ता, सुस्ती, आलस्य आदि का निवारण एवं रोग प्रतिरोधक शक्ति का विकास करती है । यह मुद्रा देखने-सुनने की शक्ति, मनोबल, निर्णायक शक्ति, स्मरण शक्ति में भी वर्धन करती है।
तृतीय विधि
हथेलियाँ पीछे की तरफ हों, अंगूठा उसमें मुड़ा हुआ हों, मध्यमा और अनामिका अंगूठे पर झुकी हुई हों, तर्जनी और कनिष्ठिका प्रथम पोर से झुकी हुई, किन्तु एकदम सख्त हों, फिर दोनों हाथों को समीप लाकर तर्जनी और कनिष्ठिका के प्रथम पोर का भाग ( नाखून वाला) परस्पर में स्पर्शित करवाने पर गे-इन् मुद्रा का तीसरा प्रकार बनता है । 41 शेष वर्णन पूर्ववत ।