Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...343
37. फु- त्सु कु यौ- इन् मुद्रा
उपर्युक्त मुद्रा गर्भधातुमण्डल आदि धार्मिक क्रियाओं के प्रयोजन से ही की जाती है। उपलब्ध साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि यह विश्वव्यापी चढ़ावे की सूचक है अर्थात इसके प्रयोग से विश्वस्तरीय द्रव्य चढ़ाये जाते हैं, जिससे मन्दिर परिसर का एक भाग अथवा मण्डल आदि का स्थान सजावट से भर जाता है । यह संयुक्त मुद्रा निम्न है -
विधि
हथेलियों को समीप कर मध्यभाग में रखें, अंगूठों को ऊर्ध्व प्रसरित कर बाह्य किनारियों से जोड़ दें, तर्जनी को झुकाकर उसके प्रतिरूप के अग्रभाग का स्पर्श करवायें, मध्यमा को बाह्य भाग से अन्तर्ग्रथित करें तथा अनामिका और कनिष्ठिका अग्र भागों का स्पर्श करते हुए रहें, इस तरह 'फु-त्सु कु - यौ-इन्' मुद्रा बनती है। 37
फु-त्सु-कु-यौ-इन् मुद्रा