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334... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
इस मुद्रा का उपयोग पूर्ववत गर्भधातुमण्डल आदि धार्मिक क्रियाओं के समय किया जाता है। जापानी बौद्ध परम्परा इस मुद्रा को महत्त्व देती है और यथाप्रसंग उसका प्रयोग भी करती है ।
विधि
दायीं हथेली का पृष्ठ भाग बायीं हथेली के पृष्ठभाग से स्पर्शित रहे, अंगुलियाँ परस्पर गूंथी हुई रहें तथा बायां अंगूठा दायें अंगूठे के अग्रभाग से स्पर्श करता हुआ रहने पर धर्मचक्र प्रवर्त्तन मुद्रा बनती है 129
धर्मचक्र प्रवर्तन मुद्रा
सुपरिणाम
• वायु एवं आकाश तत्त्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा थायरॉइड, पैराथायरॉइड, पाचक रस, लार रस, थायमस आदि के स्राव का संतुलन करती है तथा सद्भावों का निर्माण करती है ।
• यह मुद्रा करने से अनाहत एवं सहस्रार चक्र जागृत होते हैं, इससे आन्तरिक ज्ञान प्रकट होकर निर्विकल्प स्थिति को प्रकट करता है ।