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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...323
चिंतामणि मुद्रा-5
• मूलाधार एवं अनाहत चक्रों को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा इन्द्रिय नियंत्रण कर शारीरिक आरोग्य प्रदान करती है।
• शक्ति एवं आनंद केन्द्र को सक्रिय करते हुए यह काम वासनाओं का परिशोधन एवं बाह्य जगत से आभ्यंतर के जगत की ओर अभिमुख करती है। 21. चित्त गुह्य मुद्रा
यह तान्त्रिक मुद्रा भी जापानी बौद्धों के द्वारा गर्भधातु मण्डल आदि क्रियाओं के अवसर पर की जाती है। शेष वर्णन पूर्ववत। विधि ___हथेलियों को मध्यभाग में रखें, अंगूठों को ऊर्ध्व प्रसरित करते हुए उन्हें बाह्य किनारियों से मिलायें, तर्जनी और मध्यमा के अग्रभागों को सम्पृक्त करें तथा अनामिका और कनिष्ठिका को बाह्य भाग से अन्तर्ग्रथित करने पर चित्त गुह्य मुद्रा बनती है।21