Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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320... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन विधि
इसमें हथेलियाँ मध्य भाग में, अंगूठे ऊपर की ओर एवं उनके बाह्य किनारियाँ स्पर्श करती हुई, तर्जनी मुड़ी हुई एवं अग्रभाग स्पर्श करते हुए तथा शेष तीनों अंगुलियाँ बाहर की ओर अन्तर्ग्रथित हुई रहती है। 17
शेष वर्णन पूर्ववत।
सुपणाम
• अग्नि और आकाश तत्त्व का संतुलन करते हुए, शरीर - नाड़ी का शोधन, पेट के विभिन्न अवयवों का शक्ति वर्धन, हृदय को शक्तिशाली एवं कब्ज को दूर करती है।
•
मणिपुर एवं आज्ञा चक्र को प्रभावित कर यह मुद्रा मधुमेह, कब्ज, अपच, पाचन विकृतियों आदि में राहत देती है। ज्ञान तंतुओं को जागृत करती है तथा स्मरण शक्ति के विकास के साथ-साथ चित्त को शांत एवं एकाग्र बनाती है।
• दर्शन एवं तैजस केन्द्र को सक्रिय करते हुए यह मुद्रा काम वृत्तियों को शांत, शक्तियों का संचय, ईर्ष्या, घृणा, भय, मत्सरता, तृष्णा आदि पर नियंत्रण और अन्तर्दृष्टि का विकास करती है।
18. चिन्तामणि मुद्रा (तीसरी रीति)
विधि
इसमें हथेलियाँ मध्यभाग में, अंगूठे क्रॉस करते हुए, तर्जनी मुड़ी हुई एवं उनके अग्रभाग स्पर्श करते हुए, शेष तीन अंगुलियाँ अग्रभाग पर अन्तर्ग्रथित हुई रहती हैं। 18
शेष प्रथम रीति के समान जानना ।
सुपरिणाम
• इस मुद्रा का प्रयोग आकाश तत्त्व का नियमन करते हुए हृदय सम्बन्धी रोगों का निवारण, मन को एकाग्र एवं आन्तरिक आनंद का वर्धन करता है ।
• यह मुद्रा आज्ञा एवं सहस्रार चक्र को जागृत कर निर्विकल्प समाधिमय अवस्था की प्राप्ति करवाती है तथा बुद्धि को शांत, एकाग्र, कुशाग्र एवं तीव्रग्राही बनाती है।