Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...315
अग्रभागों को मध्यमा के प्रथम जोड़ पर रखें तथा कनिष्ठिका ऊपर उठी हुई रहें। इस प्रकार बू-मौ-इन् मुद्रा बनती है। 13
सुपरिणाम
• इस मुद्रा का प्रयोग आकाश एवं जल तत्त्व का नियमन करता है। इससे शरीर का आवश्यक संतुलन बना रहता है। हृदय में रक्त संचरण की क्रिया सम्यक रूप से होती है और क्रोधादि कषायों का शमन होता है।
• आज्ञा एवं स्वाधिष्ठान चक्र को प्रभावित कर यह मुद्रा बुद्धि एवं मन को शांत, शीघ्रग्राही एवं कुशाग्र बनाती है, यथार्थ ज्ञान की उपलब्धि करवाती है और नाभि को यथास्थान स्थापित करती है।
पीयूष एवं प्रजनन ग्रन्थियों को संतुलित कर मनोबल, निर्णायक शक्ति, स्मरण शक्ति, देखने-सुनने की शक्ति का वर्धन करती है । समस्त ग्रंथियों के कार्य में संतुलन बनाए रखती है तथा वंध्यत्व, प्रजनन, मासिक धर्म सम्बन्धी समस्याओं का निवारण करती है।
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14. बु- जौ - इन् मुद्रा
यह तान्त्रिक मुद्रा जापानी बौद्ध परम्परा में वज्रधातु मण्डल, गर्भधातु मण्डल, होम आदि विविध धार्मिक क्रियाओं के दरम्यान प्रदर्शित की जाती है। उपलब्ध ग्रन्थों में इसका अर्थ सम्मान पूर्वक मार्ग से हट जाना बतलाया है। इसका अभिप्राय यह हो सकता है कि जब भगवान बुद्ध किसी मार्ग से लौटते थे, तब इस मुद्रा का प्रयोग कर उनका सम्मान किया जाता था और उनके लिए पर्याप्त मार्ग को रिक्त कर दिया जाता था।
आज यह देवी-देवताओं के मंदिर दर्शन की सूचक है। इसमें हाथों की मुद्रा अर्थ संगत प्रतीत होती है।
विधि
दोनों हाथों को निकट लायें, तदनन्तर अंगूठों को Cross करते हुए एवं तर्जनी, अनामिका और कनिष्ठिका को हाथ के बाह्य भाग की तरफ अन्तर्ग्रथित करते हुए तथा मध्यमा को ऊपर की ओर उठाकर अग्रभागों को स्पर्शित करने पर बु-जौ - इन् मुद्रा बनती है । 14
सुपरिणाम
• वायु एवं आकाश तत्त्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा हृदय, रक्त