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जापानी बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक स्वरूप ...249 58. सहस्रभुजा अवलोकितेश्वर मुद्रा
उपलब्ध सामग्री के अनुसार यह तान्त्रिक मुद्रा विविध कार्यों के प्रयोजन से दर्शायी जाती है। शेष वर्णन पूर्ववत। विधि ____ हथेलियाँ मध्यभाग में, अंगूठे ऊपर उठे हुए, तर्जनी और अनामिका अपने प्रतिरूप को अग्रभाग पर क्रॉस करती हुई, मध्यमा अग्रभाग को स्पर्श करती हुई तथा कनिष्ठिका सीधी फैली रहने पर सहस्र भुजा अवलोकितेश्वर मुद्रा बनती है।
सहसभुजा अवलोकितेश्वर मुद्रा सुपरिणाम
• यह मुद्रा अग्नि एवं आकाश तत्त्व को संतुलित करती है। इससे हृदय शक्तिशाली तथा पेट के विभिन्न अवयवों की क्षमता का वर्धन होता है। • आज्ञा एवं मणिपुर चक्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा मधुमेह, कब्ज, अपच, गैस एवं पाचन विकृतियों को दूर करती है। शारीरिक, चैतसिक एवं बौद्धिक शक्ति का ऊर्ध्वारोहण करती है। • एक्युप्रेशर पद्धति के अनुसार मनोवृत्तियों को