Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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भारतीय बौद्ध में प्रचलित मुद्राओं का स्वरूप एवं उनका महत्त्व ... 285 प्रचलित है। करन् मुद्रा का यह दूसरा प्रकार भय या विस्मय का सूचक है। विधि
दायीं हथेली बाहर की तरफ अभिमुख हो, तर्जनी और कनिष्ठिका भूमि के समानान्तर सीधी रहें, मध्यमा और अनामिका हथेली में मुड़ी हुई तथा अंगूठे का अग्रभाग मध्यमा के नाखून भाग को स्पर्श करता हुआ रहने पर करन् मुद्रा बनती है। 11
करन् मुद्रा
सुपरिणाम
• इस मुद्रा के प्रयोग से अग्नि तत्त्व संतुलित होता है। इससे आत्मिक एवं शारीरिक तेज में वृद्धि होती है।
• यह मुद्रा मणिपुर चक्र को जागृत कर डायबिटिज, कब्ज, अपच, गैस आदि को दूर करती है। इसके द्वारा गोनाड्स (कामग्रंथियों) का स्राव संतुलित होता है तथा काम वासनाएँ नियन्त्रित होती है ।