Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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292... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
पर धारण की जाती है। इसमें दोनों हाथ एक-दूसरे के प्रतिबिम्ब होते हैं। इसका मंत्र है- 'ओम् गुरु सर्व तथागत धूप पूजा - मेघा - समुद्र - स्फरणा समये हुम् ।' विधि
हथेलियों को ऊपर की तरफ अभिमुख करें, अंगूठों का प्रथम पोर मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका के प्रथम पोर का स्पर्श करता हुआ उन्हें पकड़े हुए रहें, तर्जनी बाहर की तरफ फैली रहें तथा दोनों हाथों को समीप कर कनिष्ठिका के तीसरे पोरों को परस्पर स्पर्शित करने पर पुष्पे मुद्रा बनती है । 18
सुपरिणाम
• इस मुद्रा को करने से वायु एवं चेतन तत्त्व संतुलित होते हैं जिससे प्राणवायु स्थिर होती है तथा चैतन्य शक्ति का ऊर्ध्वारोहण होता है।
• यह मुद्रा अनाहत एवं सहस्रार चक्र को जागृत करती है जिससे वक्तृत्वकवित्व शक्ति का विकास, इन्द्रिय निग्रह आदि तथा मानसिक संकल्प-विकल्प, तनाव, अनिद्रा आदि से मुक्ति प्राप्त होती है । यह मुद्रा थायमस एवं पिनियल ग्रन्थि को संतुलित करते हुए बच्चों में रोग नियंत्रण, भावों का निर्मलीकरण, क्रोधादि का उपशमन एवं निर्णयात्मक शक्ति का विकास करती है।
16. सर्व बुद्ध - बोधिसत्त्वानाम् मुद्रा
भारत में यह मुद्रा उपर्युक्त नाम से उपदिष्ट है । तिब्बत में इसका नाम 'ब्याल्डिंग-फ्याग्रग्या' है। इस मुद्रा के द्वारा टोरमा के प्रथम स्तुति में मन्त्रोच्चार पूर्वक आह्वान किया जाता है जिससे उड़ते हुए पक्षी को शक्ति मिलती है। यह प्रमुखतः वज्रायना देवी तारा की पूजा से सम्बन्धित है। इस संयुक्त मुद्रा में दोनों हाथों में प्रतिबिम्ब मुद्रा होती है। पूजा मन्त्र निम्न है -
'नमः सर्व बुद्ध - बोधिसत्त्वनम् - अप्रतिहत शासनम् हे - हे भगवते महासत्त्व-सर्वबुद्ध अवलोकिते मविलम्ब - मविलम्ब इदम् बलिम् गृहन् पय गृहन् पय हुम्हुम् जा-जा सर्व विसन् छरे स्वाहा । '
विधि
इसमें हथेलियाँ मध्य भाग की तरफ अभिमुख, तर्जनी के अग्रभाग अंगूठों के अग्रभाग को स्पर्श करते हुए, शेष अंगुलियाँ ऊपर की तरफ फैलती हुई रहती हैं। पश्चात दोनों हाथों को समीप लाया जाता है तब 'सर्वबुद्ध-बोधि सत्त्वानाम्' मुद्रा रचती है। 19