Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
भारतीय बौद्ध में प्रचलित मुद्राओं का स्वरूप एवं उनका महत्त्व ... 297
सुपरिणाम
• यह मुद्रा करने वाला साधक जल एवं अग्नि तत्त्व को संतुलित करता है। इन दोनों के संयोग से शरीर की उष्णता एवं शीतलता में संतुलन, भूखप्यास आदि का उपशमन होता है।
• इस मुद्रा से स्वाधिष्ठान एवं मणिपुर चक्र जागृत होते हैं। जिससे शरीर एवं आत्मा को विशिष्ट शक्ति प्राप्त होती है। यह मुद्रा व्यक्ति को साहसी, निर्भीक, नियंत्रण कुशल, तनावमुक्त बनाते हुए जिह्वा पर सरस्वती का वास करवाती है।
• एड्रिनल एवं गोनाड्स ग्रंथियों को प्रभावित करते हुए यह प्रतिकारात्मक एवं रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति का विकास, रक्त परिसंचरण, मांसपेशियाँ, श्वसन प्रणाली आदि को सुचारू रूप से संचालित करने में सहायता करती है।
भारतीय बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का स्वरूप पूर्णरूपेण भारतीय संस्कृति से प्रभावित परिलक्षित होता है। देवी- देवताओं की आराधना - उपासना को दोनों स्थानों में महत्त्व प्राप्त है। यह मुद्राएँ साधना के क्षेत्र में ऊर्ध्वारोहण तो करती ही है वैचारिक एवं चारित्रिक सकारात्मकता में भी सहयोगी बनती है। उपरोक्त मुद्रा परिणामों से यह स्पष्ट है कि मुद्रा प्राकृतिक संतुलन का आवश्यक चरण है। सन्दर्भ सूची
1. SBE, द कल्ट ऑफ तारा मेजिक एण्ड रिच्वल इन तिब्बत, स्टीफन बेयर, पृ. 147
2. वही, पृ. 147
3. वही, पृ. 102
4. (क)
(ख)
(ग)
AKG, पृ. 20
BCO, पृ. 206
RSG, पृ. 5
5. SBE, पृ. 147
6. SBE, पृ. 147
7. GDE, पृ. 451
8. SBE, पृ. 102
9. SBE, पृ. 102
10. SBE, पृ. 102