Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
भारतीय बौद्ध में प्रचलित मुद्राओं का स्वरूप एवं उनका महत्त्व ...291 विधि
दोनों हथेलियों को एक-दूसरे के सम्मुख रखें। अंगूठा, तर्जनी, अनामिका और कनिष्ठिका को संयुक्त कर मुट्ठी बांधे, मध्यमा को ऊर्ध्व मुखरित कर उनके अग्रभागों को मिलायें तथा हाथों को आपस में सटा देने पर पाद्यम् मुद्रा बनती है।17 सुपरिणाम
• इस मुद्रा का अभ्यासी साधक पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व को संतुलित करता है। इनके संतुलन से शारीरिक जड़ता, मानसिक चंचलता, क्रोधादि कषाय क्षीण होते हैं।
• मूलाधार एवं आज्ञा चक्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा बौद्धिक एकाग्रता, कर्म कौशलता, ओजस्विता आदि में वृद्धि करती है।
• पिच्युटरी एवं गोनाड्स को सक्रिय करते हुए यह व्यक्ति को तनाव मुक्त, निरोगी, उत्साहित एवं स्नेहिल बनाती है। 15. पुष्पे मुद्रा
वज्रायना देवी तारा या अन्य देवी-देवता की पूजा करते हुए पाँच द्रव्य चढ़ाये जाते हैं। उनमें से यह पुष्प अर्पण करने की सूचक मुद्रा है। यह छाती के स्तर
पुष्पे मुद्रा