Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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जापानी बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक स्वरूप ...255 सुपरिणाम
• यह मुद्रा अग्नि एवं आकाश तत्त्व को संतुलित करते हुए शारीरिक उष्णता, आहार पाचन, भूख-प्यास, स्नायु तंत्र की स्थिति स्थापकता, हृदय की शक्ति आदि को सक्रिय एवं संतुलित रखती है। • इस मुद्रा को धारण कर सहस्रार एवं मणिपुर चक्र को जागृत किया जा सकता है। यह मधुमेह, कब्ज, अपच, पाचन विकृति, हृदय रोग आदि के निवारण में उपयोगी है। • पिनियल एवं एड्रिनल ग्रंथि को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा पित्ताशय, रक्तचाप, लीवर, रक्त परिभ्रमण, प्राणवायु, शर्करा, पानी, रक्तचाप आदि का संतुलन करती है। यह आध्यात्मिक एवं बौद्धिक विकास में भी सहायक बनती है। द्वितीय विधि ___ इस दूसरे प्रकार में हथेलियों को बाहर की ओर अभिमुख करें, अंगूठों को हथेली में मोड़ें, मध्यमा और अनामिका को अंगूठों के ऊपर मोड़े हुए रखें, तर्जनी और कनिष्ठिका सीधी रहें। दायें हाथ का पिछला हिस्सा बायें हाथ के पिछले हिस्से को क्रॉस करता हुआ रहे तथा तर्जनी और कनिष्ठिका आपस में अड़ी हुई रहने पर शब्द मुद्रा का दूसरा प्रकार बनता है।/2
शब्द मुद्रा-2