Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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भारतीय बौद्ध में प्रचलित मुद्राओं का स्वरूप एवं उनका महत्त्व ...277 या आश्चर्य की प्रेरणा तथा पापों से छुटकारा पाने की सूचक है। इस मुद्रा को वज्रपानी मुद्रा भी कहते हैं। विधि
हथेलियाँ बाहर की तरफ, तर्जनी और कनिष्ठिका ऊपर उठी हुई, अनामिका हथेली के भीतर मुड़ी हुई, मध्यमा किंचित मुड़ी हुई, अंगूठे का अग्रभाग मध्यमा के अग्रभाग के समीप रहें तथा हाथों को कलाई पर क्रॉस करते हुए दायें हाथ को आगे और बायें हाथ को शरीर के निकट रखने पर भूतडामर मुद्रा बनती है।
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भूतडामर मुद्रा सुपरिणाम
• इस मुद्रा के प्रयोग से जल एवं अग्नि तत्त्व संतुलित होकर पित्त से उभरने वाली बीमारियों, मूत्र दोष, गुर्दे की बीमारी आदि का परिष्कार होता है।
• स्वाधिष्ठान एवं मणिपुर चक्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा आत्मिक शक्ति का वर्धन करती है।
• गोनाड्स, एड्रिनल एवं पेन्क्रियाज के स्राव को संतुलित कर काम वासना को उपशान्त एवं शरीर के रासायनिक स्रावों को संतुलित करती है।