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236... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
द्वितीय विधि ___'नैबकु-केन्-इन्' मुद्रा के दूसरे प्रकार में भी हथेलियाँ एक-दूसरे की तरफ अभिमुख तथा अंगुलियाँ भीतर की तरफ अन्तर्ग्रथित रहती है किन्तु बायां अंगूठा मुट्ठी के भीतर और दायां अंगूठा बाहर रहता है।54
नैबकु-केन्-इन् मुद्रा-2 परिणाम
• आकाश तत्त्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा काम, क्रोध, मोह, लोभ, दुःख, शोक, चिंता आदि का निवारण करती है। • सहस्रार एवं विशुद्धि चक्र को जाग्रत करते हुए यह मुद्रा जल तत्त्व, वायु तत्त्व, फेफड़ें और हृदय का नियमन करती है। शक्ति उत्पादन एवं ज्ञान तंतुओं को बल प्रदान करती है। . पिनियल, थायरॉइड एवं पैराथाइरॉइड ग्रन्थियों को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा सभी ग्रंथियों का संतुलन बनाए रखती है। शरीर में स्थित सोडियम, पोटेशियम, रक्तचाप आदि की मात्रा को संतुलित रखती है। दिव्य गुणों का जागरण कर मानव को महात्मा बनाती है।