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244... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
विधि
हथेलियों को मध्यभाग में रखें, अंगूठे और अनामिका के अग्रभागों को स्पर्शित करते हुए गोला बनायें, तर्जनी और कनिष्ठिका ऊपर की ओर रहें, मध्यमा अंगुलियाँ अग्रभागों को स्पर्श करती हुई रहें तथा अंगूठे और अनामिका को ग्रथित कर मिलाने पर रागराज मुद्रा बनती है | 1
सुपरिणाम
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• रागराज मुद्रा की साधना से मूलाधार एवं विशुद्धि चक्र जागृत होते हैं। इससे अतिन्द्रिय क्षमताएँ जागृत होती है, सकारात्मक चिंतन विकसित होता है तथा चेहरा ओजस्वी एवं प्रभावशाली बनता है। • इस मुद्रा से पृथ्वी एवं वायु तत्त्व संतुलित रहते हैं। मानसिक शक्ति एवं स्मरण शक्ति की क्षमता एवं नजाकत का पोषण होता है। शरीर शक्तिशाली एवं तंदरूस्त बनता है । • विशुद्धि एवं शक्ति केन्द्र को प्रभावित करते हुए इस मुद्रा के द्वारा वासनाओं को नियंत्रित एवं निर्मल किया जा सकता है। इससे वृत्तियाँ शांत होती है और कुंडलिनी शक्ति का ऊर्ध्वारोहण होता है।
54. रत्नघट मुद्रा
यह मुद्रा अपने नाम के अनुसार रत्नों के घट को सूचित करती है। इस संयुक्त मुद्रा को छाती के स्तर पर धारण करते हैं। शेष वर्णन पूर्ववत । विधि
हथेलियों को अंगूठों के नीचे वाली एडी के हिस्से से मिलायें, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका के अग्र भागों को संयुक्त करें तथा तर्जनी को प्रथम एवं द्वितीय जोड़ से मोड़कर अंगूठों के अग्रभाग से स्पर्शित करें, तब रत्नघट मुद्रा बनती है 162
सुपरिणाम
• यह मुद्रा पृथ्वी एवं वायु तत्त्व में संतुलन करती है इससे शरीर के सभी जैविक बल सक्रिय बनते हैं। शरीर बलशाली, सुंदर एवं स्निग्ध बनता है । • मूलाधार एवं अनाहत चक्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा फॉस्फोरस,
वायु एवं