Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
बारह द्रव्य हाथ मिलन सम्बन्धी मुद्राओं का प्रभावी स्वरूप
...165
विधि
हथेलियाँ अन्दर (स्वयं) की तरफ, हथेलियों की बाह्य किनारियाँ स्पर्श करती हुई, कनिष्ठिका और मध्यमा के अग्रभाग स्पर्श करते हुए, अनामिका और तर्जनी बाहर की ओर लहराती हुई और अंगूठे बाहर की तरफ मुड़े हुए रहने पर 'तैरै-गस्सहौ' मुद्रा बनती है। 10
सुपरिणाम
• यह मुद्रा आकाश एवं चेतन तत्त्व को सक्रिय करती है जिससे अनहद आनंद की प्राप्ति होती है और मन से दूषित एवं विकृत भाव क्षीण होकर उत्तम भाव जागृत होते हैं। • विशुद्धि एवं सहस्रार चक्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा यथार्थ ज्ञान उपलब्ध करवाती है और अन्य वृत्तियों का निरोध कर समाधि की प्राप्ति करवाती है। • इस मुद्रा को धारण करने से थायरॉइड, पेराथायरॉइड एवं पिनियल ग्रंथि पर प्रभाव पड़ता है। इससे शरीर के समस्त अंगों का सुचारू संचालन, हड्डियों का विकास तथा मैत्री आदि गुणों में वृद्धि होती है।
11. अदर - गस्सहौ मुद्रा
इसे जापान में अदर गस्सहौ तथा भारत में आधार मुद्रा कहा जाता है। यह जापानी बौद्ध परम्परा में भक्त या पुजारी के द्वारा धारण की जाती है। बारह द्रव्य हाथ मिलाने की जो क्रिया होती है उनमें से एक मुद्रा है। यह मुद्रा पानी धारण करना सूचित करती है।
विधि
दोनों हथेलियों की बाह्य किनारियों को मिलाते हुए चारों अंगुलियों के अग्र भागों को संयुक्त करें तथा अंगूठों को बाहर की तरफ फैलाये रखना, अदरगस्सहौ मुद्रा है। 11
सुपरिणाम
• इस मुद्रा को धारण करने से वायु तत्त्व संतुलित होता है। इससे गठिया, वायु विकार सम्बन्धी रोग, साइटिका आदि रोगों में आराम मिलता है तथा प्राण वायु स्थिर बनती है। • अनाहत चक्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा वक्तृत्व एवं कवित्व कला में विकास करती है। • आनंद केन्द्र को सक्रिय करते हुए इस मुद्रा के द्वारा आभ्यन्तर व्यक्तित्व का निर्माण होता है।