Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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जापानी बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक स्वरूप ...215 विधि
दोनों हथेलियों को एक-दूसरे के सन्मुख रखें, फिर कनिष्ठिका को छोड़ शेष अंगुलियों को भीतर की तरफ अन्तर्ग्रथित करें तथा कनिष्ठिका को ऊर्ध्व प्रसरित करने पर गंधर्वराज मुद्रा बनती है।35 सुपरिणाम
• यह मुद्रा जल एवं पृथ्वी तत्त्व को संतुलित करते हुए शरीर में रासायनिक परिवर्तन एवं व्यक्तित्व संतुलन में सहायक बनती है। यह स्वाभाविक एवं शारीरिक रूखेपन को दूर करते हुए शरीर को स्वस्थ, कान्तियुक्त एवं आभायुक्त बनाती है। • यह मुद्रा स्वाधिष्ठान एवं मूलाधार चक्र को प्रभावित करते हुए पेट के परदे के नीचे स्थित अवयवों के कार्य का नियमन करती है। • एक्युप्रेशर विशेषज्ञों के अनुसार यह मुद्रा ज्ञान तंतुओं, मज्जा, बोन-मेरो एवं वीर्य रज का नियमन करती है तथा मासिक धर्म एवं शारीरिक विकास आदि को संतुलित रखती है। 34. गे-बकु-केन-इन् मुद्रा-1
जापान और चीन की बौद्ध परम्परा में यह मुद्रा तीन रूपों में की जाती है। चीन में इसका नाम 'वाई-फु-च-मन-यिन' है तथा भारत में इसे 'ग्रथितम् मुद्रा' कहते हैं।
यह बाह्य बंध मुट्ठी की सूचक है और छाती के सामने की जाती है। इस मुद्रा को क्रिश्चन लोगों की प्रार्थना मुद्रा के समान कहा जा सकता है। प्रथम विधि
इस रीति में दोनों हथेलियों को योजित कर अंगुलियों को बाहर की तरफ अन्तर्ग्रथित करें तथा बायें अंगूठे को दायें अंगूठे के ऊपर रखने से 'गे-बकुकेन्-इन्' मुद्रा बनती है।36 सुपरिणाम
• यह मुद्रा अग्नि तत्त्व का संतुलन करते हुए जठर, तिल्ली, यकृत, एड्रिनल आदि में अग्निरस एवं पाचक रसों का संतुलन करती है। • मणिपुर चक्र को जागृत कर यह विशेष शक्ति एवं ऊर्ध्वता प्रदान करते हुए अपच, मधुमेह, कब्ज, एसिडिटी आदि रोगों का निवारण करती है। • एड्रिनल ग्रंथि को प्रभावित कर