Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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जापानी बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक स्वरूप ...233
कोंगी-केन्-हन् मुद्रा-1
स्थित जल तत्त्व, ज्ञानतंतुओं, मज्जा, कोष, मांस, हड्डियों, बोन मेरो, वीर्य, रज
आदि का संतुलन करती है। द्वितीय विधि
उभय हथेलियों को बाहर की ओर अभिमुख करें, अंगूठों को हथेली में मोड़कर तर्जनी, मध्यमा और अनामिका के अग्रभागों को अंगूठों के ऊपर रखें, कनिष्ठिका को दोनों जोड़ से मोड़ें तथा दायां हाथ बायें को क्रॉस करता हुआ एवं कनिष्ठिका परस्पर में अड़ी हुई रहने पर ‘कोंगौ-केन्-इन्' मुद्रा का दूसरा प्रकार बनता है।52 सुपरिणाम __ • यह मुद्रा पृथ्वी एवं वायु तत्त्व को संतुलित करते हुए रक्त अभिसंचरण, शारीरिक संतुलन, श्वसन क्रिया, मल-मूत्र की गति, तापमान एवं स्मरण शक्ति का नियमन करती है। • मूलाधार एवं विशुद्धि चक्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा जल, फास्फोरस, वायुतत्त्व, फेफड़ें और हृदय का नियमन करती है। शरीर