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बारह द्रव्य हाथ मिलन सम्बन्धी मुद्राओं का प्रभावी स्वरूप... 163
विधि
दोनों हथेलियाँ सामने की ओर, अंगुलियाँ और अंगूठें ऊपर की तरफ एवं हल्के से पृथक-पृथक फैले हुए तथा हथेली की बाह्य किनारियाँ मिली हुई रहने पर ओत्तनाश-गस्सहौ मुद्रा बनती है।
सुपरिणाम
• अग्नि एवं वायु तत्त्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा तीव्र दृष्टि, पाचन शक्ति आदि के सामर्थ्य को बढ़ाते हुए प्राण वायु को स्थिर बनाती है । • इस मुद्रा से मणिपुर एवं विशुद्धि चक्र जागृत होते हैं जिससे आन्तरिक ज्ञान उजागर होता है । चित्त शान्त एवं स्वर मधुर बनता है, निरोगी काया एवं दीर्घ जीवन की प्राप्ति होती है। • विशुद्धि एवं तैजस केन्द्र का साक्षात्कार होने से जीवन एवं विचारों में तीव्रता और प्रतिकारात्मक शक्ति का विकास होता है। आध्यात्मिक वृत्ति होने से आन्तरिक तेज भी दिप्त होता है ।
9. संफुट् - गस्सहौ मुद्रा
यह संयुक्त मुद्रा बारह द्रव्य हाथ मिलन की मुद्राओं में से एक है। इसे जापानी बौद्ध परम्परा में अन्तर्भावों के साथ स्वीकार किया जाता है। यह मुद्रा रिक्त हृदय के मिलन की सूचक है।
संफुट-गरसही मुद्रा