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194... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन सुपरिणाम
• इस मुद्रा की साधना पृथ्वी एवं अग्नि तत्त्व को संतुलित करती है। इससे शरीर एवं नाड़ी शोधन, पेट के विभिन्न अवयवों की क्षमता में वर्धन, कब्ज का शमन तथा पाचन शक्ति का संतुलन होता है। • मूलाधार एवं मणिपुर चक्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा जल, फॉस्फोरस, रक्त शर्करा और सोडियम का संतुलन करती है। • यह मुद्रा एड्रिनल, पेन्क्रियाज एवं यौन ग्रंथियों के स्राव को नियंत्रित कर पित्ताशय, लीवर, रक्त अभिसंचरण, रक्तचाप, प्राणवायु आदि का संतुलन करती है। 16. अन्-आय-शोशु-इन् मुद्रा ___यह तान्त्रिक मुद्रा जापान और चीन की बौद्ध परम्पराओं में भक्त वर्ग एवं पुजारियों द्वारा धारण की जाती हैं। यह इससे पूर्वकथित मुद्रा का ही एक प्रकारान्तर है। इसे शान्ति स्थापित करने, एकत्रित करने एवं स्वर्ग लोक में किसी का स्वागत करने की सूचक मुद्रा माना गया है।
अन्-आय-शोशु-इन् मुद्रा