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जापानी बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक स्वरूप ...201
बसर- उन्- कोंगी-इन् मुद्रा - 2
सहस्रार चक्र जागृत होते हैं। इससे यह शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक विकास करते हुए शान्ति प्राप्ति में सहायक बनती है। • पिनियल एवं पिच्युटरी ग्रंथियों के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा दृढ़ मनोबल, निर्णायक शक्ति, स्मरण शक्ति एवं देखने-सुनने की शक्ति को बढ़ाती है तथा व्यक्ति को बुद्धिशाली, तत्त्वज्ञानी और मानव जाति का प्रेमी बनाती है।
22. बुद्धालोचनी मुद्रा
जापानी बौद्ध परम्परा में प्रचलित यह तान्त्रिक मुद्रा विविध धार्मिक क्रियाओं में दर्शायी जाती है। यह मुद्रा बुद्धालोचनी देव से सम्बन्धित है। यह संयुक्त मुद्रा उक्त देव को संतुष्ट करने के उद्देश्य से की जाती है ।
विधि
दोनों हथेलियों को आमने-सामने कर अंगूठों को ऊपर की ओर उठायें, तर्जनी को झुकाते हुए उसके प्रथम पोर को अंगूठों के प्रथम पोर के पृष्ठ भाग