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जापानी बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक स्वरूप ...209
चित्त एकाग्रीकरण तथा नाभि चक्र सम्बन्धी दोषों का उपशमन करती है। • इस मुद्रा के प्रयोग से पेन्क्रियाज, एड्रिनल एवं नाभि चक्र प्रभावित होते हैं। जिससे दम्भ वृत्ति, अहंकार, वासना, असामाजिक प्रवृत्ति आदि का शमन होता है।
चि- केन्- इन मुद्रा - 2
29. चिकु - चौ- शौ - इन् मुद्रा
यह मुद्रा सामान्यतया जापानी बौद्ध परम्परा में अपनायी जा रही है। इसे होम आदि विविध धार्मिक कार्यों के प्रसंग पर धारण करते हैं। यह 28 नक्षत्रों को आमंत्रण देने की सूचक मुद्रा है।
विधि
बायां हाथ सामने की ओर, अंगूठा हथेली में मुड़ा हुआ और अंगुलियाँ अंगूठे के ऊपर मुड़ी हुई रहें । दायां हाथ स्वयं की ओर, तर्जनी और मध्यमा ऊपर उठी हुई और अंगूठा अनामिका और कनिष्ठिका के ऊपर झुका हुआ रहे, इस भाँति उपर्युक्त मुद्रा बनती है। 31 इस मुद्रा में बायां हाथ बायीं जंघा पर और दायां हाथ छाती के सामने रखा जाता है।