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जापानी बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक स्वरूप ...195
विधि
दायें हाथ को हल्का सा मोड़ते हुए अंचित मुद्रा के समान कमर के स्तर पर मध्य में धारण करें और बायें हाथ में पूर्व मुद्रा के समान ही मुद्रा करें। कुछ हद तक यह मुद्रा अभय मुद्रा से भी सम्बन्ध रखती है। दायें हाथ को थोड़ा घुमाने पर यह तुष्टीकरण की मुद्रा भी दर्शाती है। 18
सुपरिणाम
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पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा हड्डी, त्वचा, नाखुन, बाल आदि को सुंदर एवं मजबूत बनाती है। शारीरिक दुर्बलता, मोटापा, जड़ता आदि को दूर कर चित्त को शांत एवं ध्यान में एकाग्रता उत्पन्न करती है। • यह मुद्रा विशुद्धि, सहस्रार एवं मूलाधार चक्र को प्रभावित करती है। इससे मुख्य रूप से ज्ञान पक्ष मजबूत बनता है तथा आरोग्य रक्षता एवं दीर्घ जीवन की प्राप्ति होती है। • पिनियल, थायरॉइड एवं यौन ग्रंथियों को सक्रिय करते हुए यह मुद्रा शरीरस्थ यौन ग्रंथियाँ, कैल्शियम, फॉस्फोरस आदि का संतुलन करती है। प्रजनन, वंध्यत्व एवं मासिक धर्म सम्बन्धी समस्याओं का भी निवारण करती है।
17. अंजलि मुद्रा अंजलि मुद्रा के अनेक प्रकारों में यह प्रकार जापानी बौद्ध परंपरा के श्रद्धालुओं द्वारा धारण किया जाता है। इसे भारत में अंजलि या अधर मुद्रा और जापान में अदर गस्सहौ मुद्रा भी कहा जाता है ।
यह तान्त्रिक मुद्रा किसी के प्रति अपना नमन और वंदन प्रस्तुत करने की सूचक है। यह संयुक्त मुद्रा पत्र मुद्रा के समान है ।
विधि
दोनों हाथों की किनारियों को परस्पर मिलाते हुए अंगुलियों को आगे की ओर बढ़ायें। इसमें हथेलियाँ और कनिष्ठिका की बाह्य किनारियाँ परस्पर में मिली हुई रहें तथा हाथों को थोड़ा सा इस तरह घुमायें जैसे कि छोटे पदार्थ को ग्रहण करने के लिए हथेलियाँ झुकी हुई हों, इस भाँति अंजलि मुद्रा बनती है। 19