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178... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन विधि ___ दायें हाथ को स्वयं के अभिमुख करते हुए अंगूठा और कनिष्ठिका को हथेली की तरफ मोड़ें और उनके अग्रभागों को संयुक्त करें, शेष तीन अंगुलियाँ ऊपर की ओर उठी हुई रहें। ____बायें हाथ की अंगुलियाँ जप माला धारण की हुई अंदर की तरफ मुड़ी रहें और यह हाथ दायें हाथ की side में रहें, इस तरह अधिष्ठान मुद्रा बनती हैं।
अधिष्ठान मुद्रा सुपरिणाम
• यह मुद्रा अग्नि एवं आकाश तत्त्व को संतुलित करती है। इन दोनों के संयोग से शरीर में आवश्यक संतुलन बना रहता है। स्नायुतंत्र की स्थिति स्थापकता, चेहरे की सुंदरता, रोग प्रतिरोधक क्षमता में विकास होता है। यह हार्ट अटैक, लकवा, मूर्छा, अपच आदि का निवारण करती है। • इसका प्रभाव मणिपुर एवं आज्ञा चक्र पर पड़ता है। इससे पाचक रसों का उत्पादन , शरीरगत रक्त, शर्करा, जल, सोडियम आदि तत्त्वों का संतुलन होता है। • यह मुद्रा पिच्युटरी, एड्रिनल एवं पेन्क्रियाज पर प्रभाव डालते हुए निर्णायक शक्ति,