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जापानी बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक स्वरूप ...181 सुपरिणाम
• अग्निचक्र शमन मुद्रा के अभ्यास से जल एवं अग्नि तत्त्व प्रभावित होते हैं। इनके संयोग से पित्त से उभरने वाली बीमारियों का शमन, मूत्र दोष का परिहार एवं गुर्दा स्वस्थ बनता है। • स्वाधिष्ठान एवं मणिपुर चक्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा पेट के परदे के नीचे स्थित सभी अवयवों के कार्य का नियमन करती है। शरीरस्थ रक्त शर्करा, जल, सोडियम आदि की मात्रा को संतुलित करती है। • एड्रिनल, पेन्क्रियाज एवं नाभि चक्र के क्रियाकलापों को सम्यक एवं संतुलित करने में भी यह मुद्रा सहायक बनती है। 5. अग्नि ज्वाला मुद्रा
अग्नि ज्वाला अर्थात आग की लपटे। यहाँ अग्नि ज्वाला मुद्रा के द्वारा अग्नि देवता को आह्वान किया जाता होगा अथवा इस मुद्रा के द्वारा जल पिप्पली का वृक्ष अथवा धव का वृक्ष, जिसमें लाल फूल लगते हैं उसे दर्शाया जाता होगा, क्योंकि अग्नि ज्वाला का एक अर्थ धव का वृक्ष और जल पिप्पल का वृक्ष भी है।
यह मुद्रा भी जापान के बौद्ध अनुयायियों में विभिन्न धार्मिक कार्यों के निमित्त की जाती है।
अग्नि ज्वाला मुद्रा