Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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80... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
सुपरिणाम
• इस मुद्रा का प्रयोग वायु एवं आकाश तत्त्व को संतुलित करता है । इससे हृदय एवं रक्ताभिसंचरण की क्रिया नियंत्रित होती है और शारीरिक संतुलन बना रहता है। श्वसन एवं मल-मूत्र की गति में मदद मिलती है । मानसिक शक्ति एवं स्मरण शक्ति का पोषण होता है। हार्ट अटैक, लकवा, मूर्च्छा आदि रोगों का निवारण होता है। • अनाहत एवं आज्ञा चक्र को जागरूक करते हुए यह मुद्रा वक्तृत्व, कवित्व, इन्द्रिय निग्रह आदि के गुण विकसित करती है। • आनन्द एवं दर्शन केन्द्र को प्रभावित करते हुए इससे निर्मल भावों का पोषण होता है तथा क्रोधादि वैभाविक दशाओं का उपशमन होता हैं। • एक्युप्रेशर विशेषज्ञों के अनुसार यह थायमस एवं पिच्युटरी ग्रंथि पर प्रभाव डालती है। यह बालकों के शारीरिक एवं मानसिक विकास में सहयोग देती है। तथा दुष्प्रवृत्तियों के वर्धन को रोकती है।
32. पेंग् प्रोंगयुक्षन्खन् मुद्रा (उपदेश मुद्रा)
बौद्ध परम्परा में प्रवर्तित यह मुद्रा भारतीय अनुयायियों द्वारा भी अनुसरण की जाती है। इसे भारत में निद्रातहस्त - वितर्क मुद्रा कहते हैं। भगवान बुद्ध द्वारा धारण की गई 40 मुद्राओं में से यह 32वीं मुद्रा है। यह भगवान बुद्ध के विशेष
पेंग्- प्रोंगयुक्षन्खन् मुद्रा