Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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146... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
विधि
हथेलियों को नीचे की तरफ अभिमुख करें, मध्यमा और अनामिका को ऊपर की ओर अन्तर्ग्रथित करें, तर्जनी और कनिष्ठिका को ऊर्ध्व प्रसरित कर उनके अग्रभागों को मिलायें तथा अंगूठे तर्जनी के विपरीत आराम करते हुए रहें, इस भाँति ‘कोंगो-मो-इन्' मुद्रा बनती है। सुपरिणाम
• इस मुद्रा के प्रयोग से आकाश एवं वायु तत्त्व संतुलित होते हैं। यह हृदय एवं वायु सम्बन्धी रोगों को उपशान्त करते हुए प्राण वायु को ऊर्ध्वगामी बनाती है। • आज्ञा एवं विशुद्धि चक्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा आन्तरिक ज्ञान को विकसित कर साधक को कुशाग्र बुद्धियुक्त, शान्तचित्त, शोकहीन एवं निरोगी बनाती है। • पिच्युटरी एवं थायरॉइड ग्रन्थि को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा शरीर की आन्तरिक क्रियाओं को सम्यक एवं सुचारू बनाती है। यह दिमाग को शान्त रखने, घाव आदि भरने, कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल आदि में भी सहायक बनती है। 6. पुष्पमाला मुद्रा
जापानी बौद्ध परम्परा में आचरित यह तान्त्रिक मुद्रा अठारह महाकर्त्तव्यों के समय श्रद्धालुओं द्वारा धारण की जाती है। यह संयुक्त मुद्रा अपने नाम के अनुरूप फूलों के माला की सूचक है। विधि
दोनों हाथों की बाह्य किनारियों को एक साथ करें, फिर मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका को भीतर की तरफ अन्तर्ग्रथित करें, तर्जनी ऊपर की ओर उठायें और हल्की सी मोड़ें तथा अंगूठों को सीधा रखने पर पुष्प माला मुद्रा बनती है। सुपरिणाम
• पुष्पमाला मुद्रा को धारण करने से शरीर में वायु एवं अग्नि तत्त्व का संतुलन होता है। इससे गैस की नाना विकृतियाँ दूर होती है, तत्क्षण शान्ति का अनुभव होता है, मस्तिष्क का स्नायुतंत्र शक्तिशाली तथा सिरदर्द-अनिद्रा आदि रोग उपशान्त होते हैं। • विशुद्धि एवं मणिपुर चक्र को प्रभावित करते हुए यह