Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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बारह द्रव्य हाथ मिलन सम्बन्धी मुद्राओं का प्रभावी स्वरूप ...155 जापानी बौद्ध परम्परा में धर्मगुरुओं और श्रद्धालुओं द्वारा धारण की जाती है। यह बारह द्रव्य हाथ मिलन में से एक है। इसकी विधि निम्न हैविधि
___ बायीं हथेली के ऊपर दायीं हथेली रखने पर यह मुद्रा बनती है। इसमें दायीं हथेली ऊर्ध्वाभिमुख और बायीं हथेली अधोमुख रहती है। इस मुद्रा को नाभि के आगे धारण करते हैं तथा यह अनुज मुद्रा के समान है। सुपरिणाम
• इस मुद्रा के प्रयोग से वायु तत्त्व प्रभावित होता है। यह मुद्रा मांसपेशियों, श्वसन प्रणाली, पाचन विसर्जन तंत्र आदि को संतुलित करते हुए वायु सम्बन्धी विकारों को निर्गमन करती है। • अनाहत चक्र के माध्यम से इन्द्रिय नियंत्रण, वाक् पटुता, कवित्व आदि गुणों का विकास होता है तथा हृदय सम्बन्धी रोगों का निवारण होता है। • आनन्द केन्द्र को जागृत कर यह मुद्रा मनोभावों को निर्मल एवं परिष्कृत करती है, बच्चों की रोग आदि से रक्षा करती है तथा आन्तरिक आनंद की अनुभूति करवाती है। 2. बोद गस्सही मुद्रा
जापान में प्रचलित यह मुद्रा 'बे-रेंज गस्सहो' के नाम से भी जानी जाती है। भारत में इसे 'पुन' मुद्रा कहते हैं। यह पूर्ववत बारह द्रव्य हाथ ग्रहण में से एक है। यह संयुक्त मुद्रा नये खिले हुए कमल की भाँति नजर आती है। विधि
दोनों हथेलियों को एक साथ मध्य भाग में रखें, फिर हथेली की एड़ियों (अंगूठे के नीचे का हिस्सा) को मिलायें, अंगुलियों को ऊपर की ओर उठायें, अंगूठा, तर्जनी और कनिष्ठिका के अग्रभागों को परस्पर संयुक्त करें, मध्यमा
और अनामिका बाहर की तरफ निकली हुई एक कप का आकार प्रदान करें इस तरह बोद गस्सहौ मुद्रा बनती है।2 सुपरिणाम __ • यह मुद्रा करने से वायु एवं चेतन तत्त्व संतुलित होते हैं। इनके संयोग से अंगों का हलन-चलन, रक्त प्रवाह, श्वसन क्रिया आदि नियमित होते हैं। फेफड़ें, हृदय, गुर्दा आदि सम्यक रूप से कार्य करते हैं। आध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि होती