Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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112... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन स्वाहा।' यह मुद्रा छाती के स्तर पर की जाती है। विधि ____ दोनों हाथों की तर्जनी और मध्यमा को फैलायें, अनामिका और कनिष्ठिका को हथेली की तरफ मोड़ें, अंगूठे को अनामिका और कनिष्ठिका के अग्रभाग से स्पर्श करवायें। ____तत्पश्चात बायें हाथ को नीचे की तरफ रखते हुए दायें हाथ की तर्जनी और मध्यमा के प्रथम दो पोरों का बायीं तर्जनी और मध्यमा के प्रथम दो पोरों से स्पर्श करवाने पर श्री वत्स्य मुद्रा बनती है। सुपरिणाम
• श्रीवत्स्य मुद्रा करने से अग्नि एवं जल तत्त्व का संतुलन एवं संयोग होता है जिससे पित्त से उभरने वाली बीमारियाँ एवं मूत्र दोष का परिहार होता है और गुर्दे स्वस्थ बनते हैं। यह मुद्रा स्वाभाविक रूखेपन को दूर कर स्फूर्ति प्रदान करती है। • मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा मधुमेह, अपच, गैस, पाचन तंत्र सम्बन्धी विकृतियों को दूर करती है। • यह मुद्रा एड्रीनल एवं गोनाड्स ग्रंथियों के स्राव को नियंत्रित करते हुए व्यक्ति को साहसी, निर्भीक, सहनशील, आशावादी बनाकर उसमें प्रतिकारात्मक शक्ति का विकास करती है। इसी के साथ सिरदर्द, कमजोरी, भूख आदि का शमन कर कामेच्छाओं का दमन करती है। 4. सितात पत्र मुद्रा ____ यह तान्त्रिक मुद्रा बौद्ध परम्परा से सम्बन्धित है और आठ मांगलिक चिह्नों में से एक है। सित अर्थात श्वेत, यह मुद्रा सफेद छत्र की सूचक है। यह चिह्न शक्ति सम्पन्ना वज्रायना देवी तारा की पूजा करते वक्त अर्पित किया जाता है। इस मुद्रा को युगल हाथों से छाती के स्तर पर करते हैं। पूजा मन्त्र- 'ओम् सितातपत्र प्रतिच्छा स्वाहा।' विधि
दायीं हथेली को मध्यभाग में अधोमुख रखते हुए अंगुलियों और अंगूठे को बायीं ओर फैलायें। बायीं हथेली को मध्यभाग में सीधा रखते हुए मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका को हथेली के अन्दर मोड़ें, अंगूठा मध्यमा के प्रथम पोर का स्पर्श