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142... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन अनामिका के ऊपर क्रॉस करते हुए रखें। यहाँ मध्यमा और अनामिका से दो क्रॉस बनते हैं।
चतुर दिग्बंध मुद्रा सुपरिणाम
• इस मुद्रा की साधना से पृथ्वी तत्त्व प्रभावित होता है। इससे शरीर बलिष्ठ एवं संतुलित रहता है तथा शरीर के ठोस तत्त्व सम्बन्धी विकार दूर होते हैं। • यह मुद्रा मूलाधार चक्र को प्रभावित करती है जिससे शरीर की निरोगता, कार्य दक्षता, कान्ति एवं तेज में वृद्धि होती है। . शक्ति केन्द्र को सक्रिय एवं संतुलित करते हुए यह मुद्रा काम वासनाओं को नियंत्रित कर ऊर्जा के अपव्यय को बचाती है और आन्तरिक गुणों को विकसित करती है। 3. हयग्रीवा मुद्रा
हयग्रीव का अर्थ है अश्व का मुख। इस मुद्रा में अश्वमुख को दर्शाया जाता है इसीलिये इसका नाम हयग्रीवा मुद्रा है।।