Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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अठारह कर्त्तव्य सम्बन्धी मुद्राओं का सविधि विश्लेषण......141 करते हैं। इस मुद्रा को बुद्धों के समूह का सूचक माना गया है। यह मुद्रा दोनों हाथों से की जाती है। विधि
दोनों हथेलियों की बाह्य किनारियों को मिलाते हुए कनिष्ठिकाओं की किनारियों को मिलायें, फिर मध्यमा और अनामिका के अग्रभाग का स्पर्श करवायें, फिर तर्जनियों को मोड़ते हुए मध्यमा के पृष्ठ भाग के दूसरे पोर से स्पर्श करवायें, फिर अंगूठों को मोड़ते हुए उन्हें तर्जनी के नीचे के भाग से स्पर्शित करवाने पर उपरोक्त मुद्रा बनती है। सुपरिणाम
• यह मुद्रा शरीर में अग्नि तत्त्व को प्रभावित करती है। इससे प्रमाद, आलस्य, अनिद्रा, अतिनिद्रा आदि दूर होते हैं। • मणिपुर चक्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा आन्तरिक एवं बाह्य शक्ति प्रदान करती है। इससे पाचन अग्नि दिप्त होती है और उदर एवं पाचन सम्बन्धी रोगों का नाश होता है। • एड्रिनल ग्रंथि को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा उसके स्राव को संतुलित करती है। इससे आन्तरिक एवं शारीरिक संरचना सम्यक बनती है तथा सिरदर्द, कमजोरी, अपच, तनाव आदि में राहत मिलती है। 2. चतुर दिग् बंध मुद्रा
भारत में इस मुद्रा को वज्रवलि मुद्रा भी कहते हैं। जापान में इस मुद्रा का नाम ‘कोंगो-चो-इन्’ है। यहाँ चतुर दिग् बंध का अर्थ वज्र की दीवार या बांध है।
यह मुद्रा जापानी बौद्ध परंपरा में धर्मगुरुओं और श्रद्धालुओं द्वारा अठारह कर्तव्यों के उद्देश्य से धारण की जाती है। मुद्रा नाम के अनुसार यह मुद्रा धार्मिक सीमाओं के बन्द होने की सूचक है। दर्शाये चित्र से भी इस कथन का समर्थन हो जाता है।
विधि
___ दोनों हथेलियों को ऊर्ध्वाभिमुख करते हुए चारों अंगुलियों को फैलायें, कनिष्ठिका को कनिष्ठिका के अग्रभाग से और तर्जनी को तर्जनी के अग्रभाग से मिलायें, दायें हाथ की मध्यमा और अनामिका को बायें हाथ की मध्यमा और