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114... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
5. सुवर्ण चक्र मुद्रा
यह तान्त्रिक मुद्रा अष्ट मांगलिक चिह्नों में से एक है तथा बौद्ध परम्परा में प्रयुक्त की जाती है। इसे स्वर्ण चक्र की सूचक कहा गया है। यह चिह्न विशेष अतिथियों को एवं वज्रायना देवी तारा की पूजा करते समय उन्हें अर्पण किया जाता है। पूजा मन्त्र यह है 'ओम् सुवर्ण चक्र प्रतिच्छा स्वाहा' ।
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विधि
सुवर्ण चक्र मुद्रा
दायें हाथ को ऊर्ध्वाभिमुख रखते हुए अंगुलियों को फैलायें तथा बायें हाथ को अधोमुख रखते हुए उसकी अंगुलियों को फैलायें। तदनन्तर बायें हाथ की अंगुलियों से दायीं हथेली का स्पर्श करते हुए 90° का कोण बनने पर सुवर्ण चक्र मुद्रा बनती है। "
सुपरिणाम
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सुवर्ण मुद्रा की साधना पृथ्वी तत्त्व को संतुलित करते हुए शरीर को शक्तिशाली एवं ऊर्जायुक्त बनाती है। यह जड़ता, भारीपन, दुर्बलता का नाश करती है और मन में दया, कोमलता एवं साहस आदि भावों का निर्माण करती है। • मूलाधार चक्र को जागृत करते हुए यह शारीरिक एवं मानसिक आरोग्य,