Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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अष्टमंगल से सम्बन्धित मुद्राओं का स्वरूप एवं मूल्य... ...123
एक को अष्टमंगल और सोलह आंतरिक द्रव्य चढ़ाये जाते हैं उनमें भी मुख्य भाव देवी तारा से जुड़ा रहता है। पूजा करते वक्त यह मन्त्र बोलते हैं
'ओम् अह् वज्र हस्ये हुम् । '
दोनों हाथों में समान मुद्रा होती है। इसे छाती के सामने धारण करते हैं। विधि
हथेलियों को सामने की तरफ रखते हुए अंगुलियों और अंगूठों को उर्ध्व प्रसरित करें तथा दोनों अंगूठों के अग्रभागों को संयुक्त करने पर वज्र हास्ये मुद्रा बनती है। 13
सुपरिणाम
• यह मुद्रा अग्नि एवं जल तत्त्व को प्रभावित करती है। इनका संयोग होने से मूत्र दोष, पित्त सम्बन्धी दोष, रक्त विकार, अस्थि, त्वचा आदि से सम्बन्धित रोगों का परिहार होता है। • इस मुद्रा का प्रभाव मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान पर होता है जिससे बाह्य एवं आन्तरिक शक्ति में वर्धन, वचनसिद्धि, वाणी की मधुरता, उदर एवं पाचन सम्बन्धी विकृतियों में राहत मिलती है। • स्वास्थ्य एवं तैजस केन्द्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा तनाव, सिरदर्द, रक्तचाप, कमजोरी, अपच आदि का उपशमन, व्यक्तित्व निर्माण एवं शारीरिक स्वस्थता में सहायक बनती है।
13. वज्र लास्ये मुद्रा
इस मुद्रा का सम्बन्ध मुख्यतः वज्रायना देवी तारा से है । यह मुद्रा दिखाते हुए 16 देवियों में से किसी एक देवी को सोलह आंतरिक द्रव्य और अष्टमंगल अर्पण किये जाते हैं, किन्तु मुख्य भाव देवी तारा की पूजाराधना का रहता है। पूजा करते वक्त निम्न मन्त्र पढ़ते हैं
'ओम् अह् वज्र लास्ये हुम्।' दोनों हाथों में समान मुद्रा की जाती है।
यह मुद्रा जापानी बौद्ध परम्परा में धर्मगुरुओं एवं श्रद्धालुओं के द्वारा गर्भधातुमण्डल, वज्रधातुमण्डल, होम आदि क्रियाओं के समय भी धारण की जाती है।