Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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128... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
अंगूठा उन दोनों का स्पर्श करता हुआ रहे । तदनन्तर बायीं हथेली को ऊर्ध्वमुख रखते हुए तथा दायीं हथेली को अधोमुख करके उसे बायीं हथेली के ऊपर रखने पर वज्र नृत्ये मुद्रा बनती है। 17
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वज्र नृत्ये मुद्रा
सुपरिणाम
• वज्र नृत्ये मुद्रा को धारण करने से अनाहत, मणिपुर एवं सहस्रार चक्र प्रभावित होते हैं। यह शरीरस्थ रक्त विकार, हृदय विकार, पाचन विकार आदि को दूर कर दैहिक स्वस्थता एवं मानसिक शांति प्रदान करती है। यह मुद्रा सद्भाव एवं सद्विचारों का वर्धन करते हुए आध्यात्मिक उन्नति में भी सहायक बनती है। • इस मुद्रा का प्रयोग वायु, अग्नि एवं आकाश तत्त्व को नियंत्रित एवं संतुलित करता है। इनके संतुलन से सभी अंग सक्रिय रहते हैं, शरीरस्थ तापमान संतुलित रहता है तथा निःस्वार्थ भाव का पोषण होता है। • आनंद, ज्ञान एवं तैजस केन्द्र को सक्रिय करते हुए यह मुद्रा कामेच्छाओं को नियंत्रित रखती है, कषाय भाव का दमन करती है और भावधारा को निर्मल एवं परिष्कृत करती है।