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अष्टमंगल से सम्बन्धित मुद्राओं का स्वरूप एवं मूल्य......111 अंगुलियों को ऊर्ध्व प्रसरित करें तथा अंगूठे और अनामिका के अग्रभागों का परस्पर स्पर्श करवाते हुए दोनों हाथों को अत्यन्त समीप रखने पर पद्म कुंजर मुद्रा बनती है। सुपरिणाम .
• इस मुद्रा को धारण करने से चेतन तत्त्व सक्रिय होता है। यह आध्यात्मिक विकास, मानसिक शान्ति, आत्म जागरण, अन्तराभिमुख अनुभूतियों एवं व्यक्तित्व विकास में सहायक बनती है। • यह मुद्रा सहस्रार चक्र एवं ललाट चक्र को जागृत करती है इससे मानसिक संकल्प-विकल्प दूर होकर चैतसिक एकाग्रता प्राप्त होती है। यह अतिन्द्रिय ज्ञान को विकसित करती है । यह मुद्रा ज्योति एवं ज्ञानकेन्द्र को सक्रिय करते हुए क्रोधादि कषायों पर नियंत्रण करती है तथा पूर्व जन्म की स्मृति आदि करने में सहायक बनती है। 3. श्री वत्स्य मुद्रा
यह तान्त्रिक मुद्रा जापानी बौद्ध परम्परा में धारण की जाती है। यह संयुक्त मुद्रा आठ मांगलिक चिह्नों में से एक है। इस मुद्रा को अंत रहित गांठ (ग्रन्थि) की सूचक माना है। यह चिह्न वज्रायना देवी तारा की पूजा करते समय मुद्रा पूर्वक अर्पित किया जाता है। पूजा मन्त्र यह है- 'ओम् श्री वत्स्य प्रतिच्छा
श्री वत्स्य मुद्रा