Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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भगवान बुद्ध की मुख्य 5 एवं सामान्य 40 मुद्राओं की......85 विधि
दायें हाथ को मस्तक के नीचे सिरहाने के रूप में रखें तथा बायें हाथ को शरीर की बायीं जंघा पर रखने से निर्वाण सूचक पेंग् परिनिप्फर्न मुद्रा बनती है।38 सुपरिणाम
• इस मुद्रा को धारण करने से पृथ्वी एवं जल तत्त्व में संतुलन स्थापित होता है। इससे शरीर में रासायनिक परिवर्तनों में सहयोग मिलता है तथा व्यक्तित्व संतुलित बनता है। कान्ति एवं स्निग्धता में वृद्धि होती है। • मूलाधार एवं स्वाधिष्ठान चक्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा आरोग्य एवं कार्य कुशलता प्रदान करती है। • नाभि चक्र एवं यौन ग्रन्थियों को संतुलित करते हुए यह मुद्रा वंध्यत्व का निवारण ज्ञान तंतुओं, मज्जा कोष, हड्डियों, बोन-मेरो, वीर्य रज का नियमन तथा नाभि को सही स्थान पर लाती है। • एक्युप्रेशर पद्धति के अनुसार यह मासिक धर्म सम्बन्धी गड़बड़ियों, स्वप्नदोष, हस्तदोष, शारीरिक गर्मी, चर्बी आदि का संतुलन करती है। 36. पेंग्-सवोइमथुपयस् मुद्रा (चावल दलिया खाने की मुद्रा) ___यह मुद्रा थाईलैण्ड की बौद्ध परम्परा में मान्य एवं बुद्ध के जीवन चरित्र को दर्शाने वाली 40 मुद्राओं में से 36वीं मुद्रा है। यह मुद्रा भगवान बुद्ध के द्वारा चावल का दलिया खाये जाने की सूचक है। इसे वीरासन या वज्रासन में संयुक्त हाथों से करते हैं। विधि
दायी हथेली को बाहर की तरफ करते हुए अंगुलियों को नीचे की ओर इस भाँति फैलायें कि वह किसी पात्र का स्पर्श कर रही हो तथा बायीं हथेली किसी पात्र को धारण की हुई गोद में रखी होने पर पेंग्-सवोइमथुपयस् मुद्रा बनती है।39 सुपरिणाम
• यह मुद्रा पृथ्वी एवं अग्नि तत्त्व को संतुलित रखती है। इससे पाचन तंत्र स्वस्थ रहता है। • इस मुद्रा का प्रभाव मूलाधार एवं मणिपुर चक्र पर पड़ता है। इससे आभ्यंतर एवं बाह्य शक्ति में वर्धन होता है। जल, फास्फोरस, सोडियम आदि तत्त्वों का संतुलन होता है। यह मुद्रा आरोग्य, कार्य दक्षता एवं ओजस्विता