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88... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
विकास करती है। यह प्राण वायु के संतुलन, चारित्र गठन, पित्ताशय, लीवर, शर्करा संतुलन एवं रक्त परिसंचरण में भी सहायक है। 38. पेंगू- सोंखेम् मुद्रा (सुई पिरोने की मुद्रा)
थाई बौद्ध परम्परा में इस मुद्रा का अत्यधिक प्रभाव है। जापान में इसे 'तेम्बोरिन् इन्' मुद्रा कहा जाता है। यह संयुक्त मुद्रा बुद्ध की जीवन कथा सम्बन्धी 40 मुद्राओं में से 38वीं मुद्रा है। इस मुद्रा को सुई पिरोने का सूचक माना गया है। यहाँ सुई पिरोने का प्रतीकात्मक अर्थ यह है कि भगवान बुद्ध सूक्ष्म चिन्तन में निमग्न रहा करते थे। यह मुद्रा वीरासन या वज्रासन में धारण की जाती है।
पेंग्-सोंखेम् मुद्रा
विधि
सुई में धागा पिरोते समय हाथों की जो स्थिति बनती है, उसी भाँति बायीं हथेली को ऊपर की तरफ और दायीं हथेली को कुछ नीचे की तरफ रखें तथा अंगूठा और तर्जनी के अग्रभाग परस्पर संयुक्त रहें जैसे कि सुई में धागा डाला जा रहा हो। 41